नर्सरी
नर्सरी एक ऐसी जगह है जहां पौधों को विभिन्न प्रवर्धन विधियों से तैयार किया जाता है तथा उनकी तब तक देखभाल की जाती है जब तक वे खेत में रोपित करने लायक न हो जाएं। नर्सरी दो प्रकार की होती है
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स्थायी नर्सरी (Permanent Nursery)
स्थाई नर्सरी के निर्माण में बहुत अधिक सावधानी रखी जाती है नर्सरी के लिए सड़क मार्ग से जुड़ी हुई जगह का चुनाव किया जाता है तथा ऐसी नर्सरी शहर के नजदीक होनी चाहिए। सिंचाई के लिए पानी और साल भर श्रमिक मिलने चाहिए। नर्सरी में शेड हाउस, ग्लास हाउस, कोल्ड फ्रेम, हॉट बेड आदि सरंचनाएं बनाई जाती है। और नर्सरी की सुरक्षा के लिए इसे चारों ओर दीवार या काँटेदार पौधों की बाड़ बनाई जाती है। इस प्रकार की नर्सरी में क्यारियाँ पक्की और स्थाई बनाई जाती है और सिंचाई की भी आधुनिक तकनीकी जैसे ओवर हैड सिंचाई आदि का उपयोग किया जाता है इस प्रकार की नर्सरी में अधिक मूल्य वाले फल वृक्ष और अलंकृत पौधे तैयार किए जाते है।
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अस्थाई नर्सरी (Temporary Nursery)
अस्थाई नर्सरी का निर्माण वृक्षों की छाया वाली जगह पर किया जाता है। इसमें पक्की क्यारियाँ नहीं बनाई जाती है। ऐसी नर्सरी वार्षिक फूल वाले पौधों और सब्जियों की तैयार की जाती है जैसे:- टमाटर, बेंगन, प्याज, गोभी, गेंदा, कॉसमॉस आदि।
नर्सरी उगाने के लाभ (Benefits of Raising Nursery)
- नर्सरी में कम जगह पर आसानी से अधिक पौधे तैयार किए जा सकते है।
- कम जगह होने के कारण पौधों को उपयुक्त जलवायुवीय दशाएं आसानी से प्रदान की जा सकती है। जबकि खुली जगह में ऐसी सुविधाएं देना संभव नहीं होता है।
- कम क्षेत्र के कारण पौधों में होने वाली बीमारियों और कीटों का आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
- नर्सरी में नियंत्रित वातावरण में बैमौसमी सब्जियों की पौध को तैयार कर उनका उत्पादन लिया जा सकता है।
- नर्सरी में बीज को उपयुक्त वातावरण दिया जा सकता है जिससे उनका अंकुरण अच्छा होता है।
- नर्सरी में हर जगह का उचित उपयोग किया जा सकता है।
- नर्सरी के हर संसाधन जैसे श्रम, जल, पोषक तत्वों का उचित उपयोग होता है।
- कुछ सब्जियों की पौध तैयार कर बुआई करने पर उसके उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
- नर्सरी से एक जैसी और स्वस्थ पौध का चुनाव कर उपज को बढ़ाया जा सकता है।
- नर्सरी में कम लागत पर अधिक पौधे तैयार किए जा सकते है।
जगह का चुनाव (Selection of Site and Location)
जगह का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- खुली और सुरक्षित जगह का चुनाव करना चाहिए।
- ऐसी जगह का चुनाव नहीं करना चाहिए जो किसी बड़ी इमारत के नजदीक हो।
- छायादार जगह नर्सरी के उपयुक्त नहीं होती है।
- नर्सरी क्षेत्र में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- नर्सरी क्षेत्र में पानी की स्थाई व्यवस्था होनी चाहिए।
- नर्सरी क्षेत्र में श्रमिक साल भर उपलब्ध रहने चाहिए।
- जगह सड़क मार्ग से जुड़ी हुई होनी चाहिए, जिस से पौधों का आसानी से परिवहन किया जा सके।
नर्सरी के हिस्से (Parts of Nursery)
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बीज शैय्या (Seed Bed)
जिन क्यारियों में बीजों को बोया जाता उन्हें बीज शैय्या कहा जाता है। इन क्यारियों में कलमों का रोपण भी किया जाता है। ऐसी क्यारियों का निर्माण छाया वाली जगह पर किया जाता है जिससे पौधों में पानी की आवश्यकता को कम किया जा सकें और क्यारी में हमेशा नमीं बनी रहे।
क्यारियों की लंबाई आवश्यकता अनुसार रखी जाती है परन्तु चौड़ाई 1 से 1.5 मीटर से अधिक नहीं रखी जाती क्योंकि अधिक चौड़ाई होने पर शष्य क्रियाएं जैसे खरपतवार निकालना आदि में समस्या होती है।
नर्सरी में कुछ गहरी क्यारियाँ भी होती है जिन क्यारियों का उपयोग पॉलिथीन थेलियों में पौधों को रखने के लिए किया जाता है। इन क्यारियों की गहराई 30 सेमी रखी जाती है गहरी होने के कारण थेलियों में पानी देने के बाद धुप सीधी न पड़ने के कारण नमी लबें समय तक बनी रहती है।
बीज शैय्या बीज बोने वाली क्यारियाँ समान्यत तीन प्रकार की होती है।
अ) समतल क्यारियां (Flat Nursery Bed)
जिन क्षेत्रों में बसंत और गर्मी के मौसम में बरसात नहीं होती अथवा मिट्टी हल्की बलुई से बलुई दोमट होती है और पानी नहीं रुकता है उन क्षेत्रों में इस प्रकार की क्यारियाँ बनाई जाती है।
इन क्यारियों के निर्माण के लिए पहले खेत की दो-तीन वार जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लिया जाता है। इसमें 10 किग्रा गोबर की अच्छी सड़ी खाद को प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिला दिया जाता है फिर खेत को आवश्यकता अनुसार लंबाई की और 1 से 1.5 मीटर चौड़ी क्यारियों में बाँट दिया जाता है क्यारी के चारों ओर मेढ बना दी जाती है दो क्यारियों के मध्य सिंचाई नाली बना दी जाती है।
ब) उठी हुई क्यारी (Raised Nursery Bed)
सामान्यतः इस प्रकार की क्यारियों का उपयोग नर्सरी में बीज बोने के लिए किया जाता है। उठी हुई क्यारी बारिश के दिनों में भी लाभदायक होती है। भारी मिट्टी में बारिश के दिनों में आद्र विगलन (damping off) की अधिक समस्या पाई जाती है इस लिए इस प्रकार की क्यारी जमीन से 10-15 सेमी उठी हुई होने के कारण बीमारी का प्रकोप कम होता है। क्यारी का निर्माण करते समय मिट्टी में से कंकड़, पत्थर पौधों की जड़े आदि को निकाल दिया जाता है फिर 10 किग्रा गोबर की अच्छी सड़ी खाद को प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिला दिया जाता है दो क्यारियों की लाइनों के मध्य 50-60 सेमी की दूरी रखी जाती है। जिस से सिंचाई करने, खरपतवार निकालने, में उपयोग किया जाता है।
स) गहरी क्यारी (Sunken Nursery Bed)
गहरी क्यारियाँ गर्मी के मौसम में अधिक उपयोगी रहती है ऐसी क्यारियाँ जमीन से 10-15 सेमी गहरी होती है जिस से पौधे ठंडी हवा से बच जाते है अधिक सर्दी में क्यारी को पॉलिथीन की शीट से ढका भी जा सकता है।
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पैतृक वृक्ष खंड (Mother Plant Block)
प्रत्येक नर्सरी में एक पैतृक वृक्ष खंड होना चाहिए। जिससे कलम बनाने, कलिकायन आदि के लिए पौधों के भाग मिल सकें। पैतृक वृक्षों की निम्न विशेषताएं होनी चाहिए
- वृक्ष अच्छी किस्म के होने चाहिए।
- इनकी किस्म उस क्षेत्र में जानी पहचानी और पसंद की जाने वाली होनी चाहिए।
- वृक्ष अधिक उपज देने वाले होने चाहिए।
- ये वृक्ष कीटों और बीमारियों से मुक्त होने चाहिए।
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पॅकिंग खंड (Packing Yard)
पॅकिंग खंड नर्सरी का मुख्य भाग होता है जहां पौधों को बेचने के लिए तैयार किया जाता है। जिस से उन्हें एक जगह से दूसरी जगह तक आसानी से स्थानतरित किया जा सके। पॅकिंग खंड ऑफिस के नजदीक होना चाहिए। तथा सड़क से जुड़ा होना चाहिए इसमें पौधों को पैक करने का समान जैसे बॉक्स, रस्सी, जुट के धागे, पॉलीथिन आदि हर समय उपलब्ध रहनी चाहिए।
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गमला घर (Pot House)
इनार्चिगं के लिए मूलवृंत (rootstock) गमलों में या पॉलिथीन की थैलियों में तैयार किए जाते है इसके अतिरिक्त कुछ अलंकृत पौधों को भी गमलों में लगाया जाता है जिन्हें गमला घर में रखा जाता है इसलिए नर्सरी में छायादार जगह पर गमला घर बनाया जाता है इसे शेड नेट से भी तैयार किया जा सकता है।
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खाद का गड्डा (Compost Pit)
नर्सरी में खाद की हमेशा आवश्यकता रहती है इसलिए नर्सरी के एक कोने में खाद के लिए गड्डा खोदा जाता है इसमें नर्सरी के कचरे \, पत्तियों आदि को डाला जाता जो की सड़ने के बाद खाद के रूप में उपयोग किया जाता है।
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पानी का स्रोत (Water Source)
नर्सरी में पानी का एक स्थाई स्रोत होता है क्योंकि नर्सरी में नए पौधों को प्रतिदिन सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसलिए पानी का स्रोत नर्सरी के मध्य में बनाया जाता है जिससे नर्सरी के प्रत्येक भाग तक पानी को पहुंचाया जा सकें। नर्सरी में सुविधा के अनुसार ट्यूब वेल, कुआं अथवा डिगी आदि बनाई जाती है।
References cited
1.Chadha, K.L. Handbook of Horticulture (2002) ICAR, NewDelhi
2.Jitendra Singh Basic Horticulture (2011) Kalyani Publications, New Delhi
3.K.V.Peter Basics Horticulture (2009) New India Publishing Agency
4. Jitendra Singh Fundamentals of Horticulture, Kalyani Publications, New Delhi