अन्य नाम: Balsam pear, Bitter cucumber, करेला (हिंदी)
वनस्पति नाम: Momordica charantia L.
कुल : कुकुरबिटेसी
गुणसूत्र संख्या: 2n = 22
उत्पति : उर्ष्णकटिबंधीय एशिया या इंडो बर्मा
महत्वपूर्ण बिंदु:-
- करेले में कड़वाहट मोमोर्डिसिन (momordicin) के कारण होती है।
- करेले मे लोह तत्व भरपूर होता है।
- 400C से ऊपर उच्च तापमान करेले में पुरुषता (Maleness) का कारण बनता है।
क्षेत्र और उत्पादन
यह व्यापक रूप से भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर में उगाया जाता है और बड़े पैमाने पर चीन, जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में उगाया जाता है। 2018 में भारत में यह 97000 हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया गया। जिसमें उत्पादन 1137000 मेट्रिक टन हुआ था। देश के कुछ प्रमुख करेला उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल हैं ।
आर्थिक महत्व
- फलों में 92.0 ग्राम नमी, 1.60 ग्राम प्रोटीन, 0.20 ग्राम वसा, 1.8 मिलीग्राम आयरन, 210 IU विटामिन ए और 88.0 मिलीग्राम विटामिन सी प्रति 100 gm वजन होता है।
- करेले का फल रोगाणु नाशक और यह रेचक और आसानी से पच जाता है।
- यह रक्त रोगों, मधुमेह और अस्थमा के इलाज के लिए अच्छा माना जाता है।
- करेला पत्तियों को गैलेक्टोगोज (galactogogs) के रूप में कार्य करने के लिए जाना जाता है और पत्तियों से तैयार एक पाउडर अल्सर के इलाज के लिए अच्छा है।
- फलों का उपयोग अचार तैयार करने में भी किया जाता है और सूखी सब्जी के रूप में संग्रहित किया जाता है।
किस्में
- चयन
पूसा दो मौसमी (आई ए आरआई से विकसित)
प्रीति (KAU, Vellanikkara),
पूसा विशिष्ट (आई ए आर आई),
कोयंबटूर लांग (TNAU),
हरकानी,
प्रियंका (KAU, SRS, तिरुवल्ला)
कोंकण तारा (कोंकण कृषि विद्यापीठ, दापोली, MH),
अर्का हरित (आई आई एच आर, बंगलोर)
V K-1 (प्रिया) (KAU , वेलानिककारा, त्रिशूर),
एम डी यू- 1 (टी एन ए यू एग्रीकल्चर कॉलेज, मदुरै),
लांग व्हाइट,
पंजाब बी जी- 14,
फुले बी जी- 6,
को -1,
कल्याणपुर बरहमसी,
कल्याणपुर सोना,
हिसार सलेक्शन,
2. हाइब्रिड
-
- फुले ग्रीन गोल्ड- ग्रीन गोल्ड X दिल्ली लोकल (एम पी के वी, Rahuri),
- पूसा हाइब्रिड 1 (आई ए आर आई),
- आर एच आर बी जी एच 1 (एम पी के वी, Rahuri)
- BGOH-1- MC.-84 X MDU.-1 (TNAU, Coimbatore),
जलवायु
यह दोनों उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जा सकता है, लेकिन गर्म जलवायु को इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा माना जाता है । अच्छी वृद्धि और अच्छी उपज के लिए 25 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान सबसे अच्छा रहता है।
20 डिग्री सेल्सियस से नीचे कम तापमान पर, विकास धीमी गति से होता है और उपज भी कम मिलती है । जब तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है तो मादा फूलों का कम उत्पादन होता है जिसके परिणामस्वरूप उपज भी कम होती है । छोटी अवधि के दिनो में लंबे दिनों की तुलना में मादा पुष्प (pistillate) की संख्या में वृद्धि होती है ।
मिट्टी
करेले को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है लेकिन रेतीले दोमट और सिल्ट दोमट मिट्टी, कार्बनिक पदार्थ से भरपूर और अच्छी जल निकासी में समृद्ध मृदाओं को सबसे अच्छा माना जाता है। उपयुक्त पीएच 6.5-7.0 होता है ।
मौसम/ बोने का समय
पहाड़ियों में अप्रैल से जुलाई तक बीज की बुआई होती है।
मैदानी और उत्तर भारत में जनवरी से मार्च तक बीज की बुआई होती है। दूसरी बरसात की फसल जून-जुलाई में ली जाती है।
बीज दर और बीज उपचार
एक हेक्टेयर में करीब 4 से 5 किलो बीज बोने के लिए पर्याप्त होते है।
बीजों को 6 से 12 घंटे तक पानी में भिगोने से अंकुरण बढ़ेता है। बीजों को बोने से पूर्व थिराम (Thiram) 2 ग्राम /किलो बीज के हिसाब से उपचरित कर बोना चाहिए ।
खेत की तैयारी
खेत की 3-4 बार हल से जुताई करें। अंतिम जुताई पर 20-25 टन FYM खाद डाले।
बुवाई
60 सेमी चौड़ाई के लंबे कुंड अथवा चैनल 2m की दूरी पर बनाए जाते हैं । इस चैनल के साथ, 45 सेमी के गड्ढे 1.5 मीटर की दूरी पर खोदे जाते हैं। प्रत्येक गड्ढे में चार बीज बोए जाते हैं और बाद में प्रति गड्ढे दो से तीन पौध रखे जाते हैं। मुख्य खेत में सीधी बुआई के बजाय बीजों को पॉलीथिन बैग में बोया जा सकता है और 15-20 दिन बाद मुख्य खेत में गड्ढों में शिफ्ट किया जा सकता है।
खाद और उर्वरक
मृदा परीक्षण के अनुसार उर्वरकों को दिया जाना चाहिए। आम तौर पर, यदि मिट्टी का मध्यम उर्वर स्तर है तो फसल को 56 :30 :30 किलोग्राम/हेक्टेयर एनपीके दिया जाना चाहिए।
फास्फोरस, पोटाश की पूरी खुराक और नाइट्रोजन की आधी खुराक अंतिम जुताई पर दी जाती है और टॉप ड्रेसिंग के रूप में बुवाई के 30 दिन बाद नाइट्रोजन की शेष खुराक दी जाती है।
सिंचाई
फसल को गर्मियों में रोपण के तुरंत बाद और बाद में फूलों तक 2-3 दिनों के अंतराल पर सिंचित किया जाना चाहिए। बरसात के मौसम की फसल को सामान्य रूप से शुष्क समय (dry spell) के अलावा अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
खरपतवार नियंत्रण
खेत खरपतवार से मुक्त होना चाहिए। इसलिए खरपतवार आबादी को कम करने के लिए दो से तीन निराई-गुड़ाई जरूरी है। 4.5 kg/ha Glycophosphate जैसे शाकनाशी खरपतवार के उगने के बाद और बुवाई से पहले उपयोग किए जा सकते है, तो खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है ।
विकास नियामकों का उपयोग / PGR
Sr No |
PGR/केमिकल |
मात्रा |
प्रभावता |
1 |
एथ्रिल |
25ppm |
मादा फूल और फल में अधिक बीज बढ़ाएं |
2। |
GA3 |
60ppm |
मादा फूलों को बढ़ाएं |
3। |
MH |
150-250ppm |
मादा फूलों को बढ़ाएं |
4। |
सीसीसी (CCC) |
50-100 ppm |
मादा फूलों को बढ़ाएं |
5। |
सीसीसी |
200ppm |
मादा फूल को कम करें |
6। |
Paclobutrazol |
100ppm |
उपज में वृद्धि |
उपरोक्त रसायनो का 2 और 4 लीफ स्टेज पर दो बार पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
तुड़ाई
किस्मों और सीजन के हिसाब से बुआई के 60-70 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार होती है। तुड़ाई के लिए अपरिपक्वव कोमल फलों जो गहरे हरे रंग के हो पसंद किया जाता है। किस्मों के अनुसार फल का रंग हल्का-हरा या गहरा-हरा होता है। छोटे अंतराल पर नियमित कटाई से फलों की संख्या बढ़ेगी और उपज भी बढ़ती है ।
उपज
करेला की औसत उपज 100-150 Q/हेक्टेयर होती है, जबकि संकर किस्मों से 200-300Q / ha तक उपज मिल जाती है।
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