वानस्पतिक नाम: बीटा वल्गरिस एल.
कुल: चिनोपोडियासी
गुणसूत्र संख्या: 2n=18
उत्पत्ति: यूरोप अथवा भूमध्यसागरीय क्षेत्र
पुष्पक्रम का प्रकार: स्पाइक
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- चुकंदर की उत्पत्ति बीटा वल्गेरिस एल. की सब स्पीशीज मेरिटाइम और बीटा पटुला के संकरण द्वारा हुई है
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुत लोकप्रिय है।
- चुकंदर का लाल बैंगनी रंग β-सायनिन वर्णक और पीला रंग β-ज़ैन्थिन वर्णक की उपस्थिति के कारण होता है।
- चुकंदर में सिट्रिक एसिड मौजूद होता है।
- चुकंदर दीर्घ दीप्तीकलिक पौधा है।
- चुकंदर एक डायोसिस (dioecious) पौधा है
- चीनी बनाने के लिए यह दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है।
- चुकंदर फोलिक एसिड का एक समृद्ध स्रोत है, जो गर्भवती महिलाओं के लिए स्पाइना बिफिडा के जोखिम को कम करने के लिए आवश्यक है।
- चुकन्दर में विरलीकरण करना अनिवार्य है।
- एक ग्राम सीड बॉल में लगभग 50 बीज होते हैं।
पोषक तत्व (प्रति 100 ग्राम खाद्य भाग) और उपयोग
चुकंदर का उपयोग मांसल जड़ों के रूप में किया जाता है जिसका उपयोग सब्जी, सलाद और अचार और डिब्बाबंदी के लिए किया जाता है।
नमी |
87.6 ग्राम |
विटामिन A |
0 IU |
प्रोटीन |
1.7 ग्राम |
विटामिन C |
10 मिलीग्राम |
वसा |
0.1 g |
लोहा |
1 mg |
कार्बोहाइड्रेट |
8.8 g |
कैल्सीयम |
18 mg |
ऊर्जा |
43 kcal |
फॉसफोरस |
55 mg |
जलवायु
चुकंदर को कम तापमान और ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। उच्च तापमान ज़ोनिंग-जड़ में वैकल्पिक हल्के और गहरे लाल मोटे छल्लों का कारण बनता है। 15 दिनों के लिए 4.5-10 डिग्री सेल्सियस के अत्यधिक कम तापमान के परिणामस्वरूप बोल्टिंग हो जाती है।
मिट्टी और उसकी तैयारी
चुकंदर की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली गहरी दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। चुकंदर मिट्टी की अम्लता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है और आदर्श पीएच 6.0-7.0 है। इसे लवणीय भूमि में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। भूमि को अच्छी तरह से जुताई करके इसे ढीला और भुरभुरा बनाया जाता है। ढेलों को पूरी तरह से हटा देना चाहिए।
किस्में
चपटी: फ्लैट-ईगिप्शियन
छोटे सिरे वाली: गोलाकार पक्षों और शंक्वाकार या पतले आधार के साथ ऊपर और नीचे से चपटी, उदाहरण- क्रॉस्बी इजिप्त, अर्ली वंडर, एस्ग्रो वंडर
गोल या गोलाकार: जड़ें आकार में गोल या गोलाकार होती हैं, उदाहरण- डेट्रॉइट डार्क रेड, क्रिमसन ग्लोब।
आधी-लंबी: लंबाई लंबे प्रकार से छोटी होती है, उदाहरण- हाफ-लॉन्ग ब्लड, विंटर कीपर।
लंबी: जड़ें लंबी होती हैं, 40 सेंटीमीटर तक बढ़ सकती हैं, यूरोप में काफी लोकप्रिय है, जैसे, लॉन्ग डार्क ब्लड।
किस्में |
विशेष लक्षण |
डेट्रॉइट डार्क रेड |
आई ए आर आई नई दिल्ली से विकसित, चिकनी समान गहरी लाल त्वचा के साथ जड़ें पूरी तरह गोल; हल्के लाल ज़ोनिंग के साथ गहरा रक्त लाल गुद्दा। |
क्रिमसन ग्लोब |
यह गोल से चपटी गोल जड़ें पैदा करती है। बाहरी त्वचा बिना ज़ोनेशन के लाल और क्रिमसन लाल गुद्दा होता है। |
अर्ली वंडर |
गहरी लाल छिलके और गहरे लाल गुद्दे और हल्के लाल ज़ोनिंग के साथ जड़ें चपटी गोलाकार। |
क्रॉस्बी इजिप्त |
गहरे बैंगनी-लाल गूदे वाली जड़ें चपटी ग्लोब गर्म मौसम में सफेद जोनिंग बनाती हैं। |
ऊटी -1 |
टीएनएयू कोयम्बटूर से विकसित, इस किस्म की जड़ें रक्त लाल गुद्दे के रंग के साथ गोल होती हैं। यह नीलगिरी परिस्थितियों में बीज सेट करता है। |
बुवाई का समय
- मैदानी इलाकों में: सितंबर-नवंबर
- पहाड़ी क्षेत्रों में: मार्च-अप्रैल
बीज दर
7-9 किग्रा/हेक्टेयर
बोने की विधि
समतल क्यारी या मेड़ और खांचे तैयार किए जाते हैं। पानी में भीगे बीज बॉल्स जिनमें 2-6 बीज होते हैं, को पंक्तियों में 2.5 सें.मी. गहरा ड्रिल किया जाता है।
दुरी
45-60 सेमी x 8-10 सेमी
खाद और उर्वरक
अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद या FYM @ 25 टन / हेक्टेयर देने की सलाह दी जाती है। औसत मिट्टी के लिए, 60-70 किग्रा नाइट्रोजन, 100-120 किग्रा फास्फोरस, 60-70 किग्रा /हेक्टेयर पोटाश और 15-20 किग्रा बोरॉन/हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है। N की आधी मात्रा और P, K, और B की पूरी मात्रा बुवाई से पहले भूमि की तैयारी के समय और शेष N की आधी मात्रा बुवाई के 30-45 दिनों के बाद बेसल रूप से डाली जानी चाहिए।
सिंचाई
बीजों के अंकुरण और वृद्धि के लिए नम मिट्टी आवश्यक है। उत्तर भारत के मैदानी भागों में सामान्यत: ग्रीष्मकाल में 5-7 सिंचाइयां तथा शीतकाल में 3 सिंचाइयां दी जाती हैं।
अंतर् शस्य क्रियाएं
फसल की शुरूआती अवस्था में हल्की गुड़ाई करके खेत को आमतौर पर खरपतवार मुक्त रखा जाता है और मिट्टी चढ़ाई जाती है। विरलीकरण (थिनिंग) एक आवश्यक ऑपरेशन है क्योंकि प्रत्येक बीज से एक से अधिक अंकुर निकलते हैं।
खुदाई
बुवाई के 8-10 सप्ताह बाद जब कंदों का व्यास 3-5 सेमी. होता है तब पत्तों को हाथ से पकड़कर ऊपर की ओर खींचकर खुदाई की जाती है
उपज
25-30 टन/हेक्टयर
भंडारण
चुकंदर 90% अपेक्षित आद्रता के साथ 0°C पर भंडारित किया जाता है।
शारीरिक विकार
आंतरिक काला धब्बा (Internal black spot): इसे हार्ट रोट या क्राउन रोट भी कहा जाता है। बोरॉन की कमी वाले पौधे आमतौर पर कमजोर और बौने रह जाते हैं। पत्तियाँ सामान्य से छोटी होती हैं। यह विकार बोरॉन की कमी के कारण ज्यादातर क्षारीय मिट्टी में होता है।
नियंत्रण:
- क्षारीय मिट्टी में चुकंदर की बुवाई से बचें,
- कम सिंचाई की आपूर्ति करके सूखे की स्थिति से बचें, और
- मिट्टी में बोरेक्स (10-15 किग्रा/हेक्टेयर) या बोरिक एसिड का 2% 2-3 पर छिड़काव करें।
धब्बेदार पीला (Speckled yellows): प्रभावित पौधों की पत्तियों में पीले-हरे क्लोरोटिक धब्बेदार क्षेत्र दिखाई देते हैं। यह मैंगनीज की कमी के कारण होता है।
नियंत्रण:
- मैंगनीज सल्फेट का 5-10 किग्रा/हेक्टेयर की दर से मिट्टी में प्रयोग या 25% का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए।
कीटों का नियंत्रण
- एफिड (माइजस पर्सिका, ब्रेविकोरीन ब्रैसिका): कीट पौधे के कोमल भागों से रस चूसते हैं। संक्रमित पत्तियाँ मुड़ जाती हैं, पीली हो जाती हैं और अंत में मर जाती हैं।
नियंत्रण:
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल @ 0.5-0.6 मिली/लीटर का छिड़काव करें।
- चुकंदर लीफ माइनर (पेगोनिया ह्योकायामी): प्रभावित पौधे बौने रह जाते हैं, पत्तियां फफोलेदार होकर, मुरझा जाती हैं और मर जाती हैं।
नियंत्रण:
मैलाथियान 50 ईसी @ 1.5-2.0 मिली/लीटर पानी का छिड़काव करें।
- सेमी लूपर (Plusia nigrisigna): कीट पत्तियों को खा जाती है और फसल को नुकसान पहुंचाती है।
नियंत्रण:
मैलाथियान 50 ईसी @ 1.5-2.0 मिली/लीटर पानी की दर से फसल पर छिड़काव करें।
बीमारीयां
- लीफ स्पॉट (सर्कोस्पोरा बेटिकोला): लाल बैंगनी रंग के साथ छोटे भूरे धब्बों का दिखना और धब्बे बड़े होकर भूरे हो जाते हैं।
नियंत्रण:
- 15 मिनट के लिए 50 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी से बीज उपचार, और
- इंडोफिल एम-45 @ 2 ग्राम / लीटर पानी पर स्प्रे करें।
- डाउनी मिल्ड्यू (पेरोनोस्पोरा स्कैच्टी): पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे तथा निचली सतह पर सफेद वृद्धि, अनियमित के साथ दिखाई देती है। फूलों की टहनियां अवरुद्ध और विकृत रहती हैं।
नियंत्रण:
- कार्बेन्डाजिम या थीरम या कैप्टान @ 2 ग्राम/किलो बीज के साथ बीज का उपचार करें, और
- 15 दिनों के अंतराल पर इंडोफिल एम-45 @ 2 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव करें।
- मोज़ेक: वायरस एफिड्स द्वारा फैलता है। परिगलित, धारीदार गोल विशिष्ट धब्बे इसके लक्षण हैं।
नियंत्रण:
एफिड्स के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल @ 0.5-0.6 मिली/लीटर का छिड़काव करें।
- कर्ली टॉप: यह चुकंदर के फुदके द्वारा फैलता है। प्रभावित पौधे की पत्तियाँ छोटी और मुड़ी हुई रहती हैं।
नियंत्रण:
- रोग मुक्त बीज का प्रयोग करें,
- प्रभावित पौधों को खेत से हटा दें, और
- इमिडाक्लोप्रिड 8 SL @ 0.5-0.6 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।