दूसरे नाम : मिर्च (Hot pepper), शिमला मिर्च (Sweet pepper & Bell pepper)
वानस्पतिक नाम : Capsicum annum var. annum
Capsicum annum var. grossum
कुल: Solanaceae
गुणसूत्र संख्या : 2n=24.
जन्म स्थल : मध्य और दक्षिणी अमेरिका (Central and South America (Mexico))
महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Points)
- मिर्च दिन तटस्थ (day neutral) फसल होती है।
- मिर्च मे पुरुष बाँझपन (Male Sterility) पाई जाती है।
- इसमें का तीखापन (Bitterness) कपसीसिन (capsicin) के कारण होता है।
- शिमला मिर्च का सबसे ज्यादा उत्पादन चीन करता है ।
- भारत मे मिर्च का सबसे ज्यादा क्षेत्र, उत्पादन और उपभोग किया जाता है।
- भारत विश्व के मिर्च के कुल निर्यात का 4% भाग निर्यात करता है
- सुखी मिर्च में 6% डंठल, 40% pericarp और 54% बीज होते है।
- हरी मिर्च से सुखी लाल मिर्च का अनुपात 10:1 होता है।
- ऐसी किस्में जिनमें पेरीकार्प पतली, बीज कम और पुष्प क्रम मजबूत होता है सुखाने अथवा पाउडर बनाने के लिए उत्तम रहता है।
- नमी को 80% से 10 % तक लाने के लिए मिर्च को 5-10 दिनों तक धूप मे सुखाया जाता है।
- पुष्पन का समय 5:00 AM का होता है।
- भारत मे बेमौसमी मिर्च का उत्पादन हिमाचल प्रदेश से होता है।
- मीच मे विटमिन C भरपूर मात्रा मे पाया जाता है।
- Arka Abir: पेपरिका (Capsicum fruitscence) की रंग के लिए उत्तम किस्म है।
- C. pubescence मिर्च की प्रजाति मे बैंगनी रंग के पुष्प आते है जबकि दूसरी प्रजातियों मे सफेद आते है।
Area and production
प्रमुख मिर्च उगाने वाले राज्य हैं आंद्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार।
मिर्च का क्षेत्रफल 309 हजार हेक्टर और उत्पादन 3592 हजार टन।
Table: 2018 मे क्षेत्र और उत्पादन मिर्च और शिमला मिर्च का।
Crop | 2015-16 | 2016-17 | 2017-18 | |||
Area (000 ha) | Production (000 MT) | Area (000 ha) | Production (000 MT) | Area (000 ha) | Production (000 MT) | |
Chilli | 292 | 2955 | 316 | 3634 | 309 | 3592 |
Capsicum | 46 | 288 | 24 | 306 | 24 | 326 |
Source: NHB data base 2018
Table: मिर्च उगाने वाले प्रमुख राज्य।
State | Area (000 ha) | Production (000 MT) |
Andhra Pradesh | 19.34 | 434.89 |
Karnataka | 45.91 | 673.81 |
Maharashtra | 30.59 | 342.48 |
Bihar | 42.91 | 451.19 |
Madhya Pradesh | 41.29 | 669.16 |
Chhattisgarh | 28.87 | 222.10 |
Source: NHB data Base 2018
शिमला मिर्च का उत्पादन देश के ठंडे क्षेत्रों और ठंडे मौसम वाले शहरों की परिधि तक सीमित है। जैसे कि शिमला मिर्च बैंगलोर, बेलगाम और मैसूर (कर्नाटक), नीलगिरी (तमिलनाडु), पुणे, ठाणे (महाराष्ट्र), रांची (झारखंड), दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल), हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश की पहाड़ियों में उगाई जाती है।
आर्थिक महत्व एवं उपयोग (Economic importance and uses)
मिर्च का उपयोग मुख्य रूप से स्वाद, रंग और तीखापन के लिए भोजन में किया जाता है। सूखी मिर्च, पाउडर या पेस्ट का और यहां तक कि हरी मिर्च का उपयोग करी, सांबर, रसम और अन्य दिलकश व्यंजनों के लिए किया जाता है, जो खाद्य पदार्थों में तीखापन, रंग और स्वाद प्रदान करता है।
Varieties of chilli
Selection:-
Kalyanpur Yellow | Sabour angar | Arka Lohit |
Bhagyalaxmi | Sindhur |
Hybrid:
G-S | Pusa Jwala | Bhaskar |
NP-46-A | Pant -C-1 | Andhra Jyoti |
CH-1 (using GMS line) |
Pusa Jwala, Pant C-1:- Leaf Curl Resistant Varieties
Punjab Lal, Punjab Surakh :- TMV, Leaf curl, Wilt and Die back resistant varieties (Multiple disease resistant varieties)
K-2:- Fruit Rot Resistant variety
Utkal Rashmi, Arka Gaurav:- Bacterial wilt से रोगरोधी किस्म।
Arka Lohit:- powdery mildew से रोगरोधी।
Bhaskar:- thrips and mites से सहिष्णु ।
शिमला मिर्च की किस्में
Introduced
Sweet Banana | California wonder | Golden Wonder |
Yollo wonder | World Beater | Chinese Giant |
Bullnose |
Selection
Arka Basant, Arka Gaurav, Arka Mohini
Hybrids:-
Pusa Deepti | Green Gold | Early Bounty |
Bharat (resistant to TMV) | India | Hira |
Pusa Meghdoot | Lario | KT-1 |
जलवायु (Climate)
मिर्च गर्म नम उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है। समुद्र तल से लगभग 1000 मीटर ऊपर इसकी खेती की जा रही है। मिर्च की खेती के लिए 20-250C तापमान की आवश्यकता होती है। शिमला मिर्च के लिए तुलनात्मक रूप से ठंडी जलवायु परिस्थितियों को प्राथमिकता दी जाती है। फलों के पकने के दौरान कम तापमान से फलों के रंग का विकास देरी से होता है। अगर तापमान 400 C से कम रहता है तो फलन कम होता है और फल झड़ने लगते है।
मृदा (Soil)
मिर्च को किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी जो कि कार्बनिक पदार्थों से भरपूर है, मिर्च की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। मिट्टी का पीएच 6.5 के पास होना चाहिए।
मौसम (Seasons)
- देश के कई हिस्सों में यह तीनों सीजन में उगाया जाता है। मानसून के दौरान फसल मुख्य रूप से सूखी लाल मिर्च के लिए उगाई जाती है जबकि अन्य मौसमों में यह ज्यादातर हरी मिर्च के लिए होती है।
- महाराष्ट्र और आंध्रा प्रदेश में – मई के तीसरे सप्ताह से जून के मध्य तक।
- गैंगेटिक क्षेत्रों में- जून
- पंजाब और राजस्थान- अप्रैल से मई
- शिमला मिर्च को सर्दियों या रबी मौसम (अगस्त) और वसंत गर्मियों की फसल को नवंबर में उगाया जाता है।
Nursery practices
एक हेक्टेयर रोपण के लिए लगभग 250 मीटर2 क्षेत्र पर्याप्त होता है। आमतौर पर नर्सरी बेड 7.5 मीटर लंबी, 1-1.2 मीटर चौड़ाई और 10-15 सेमी ऊंचाई के आकार में तैयार किए जाते हैं। अच्छी तरह से विघटित गोबर की खाद को 3 किलोग्राम / मी2 की दर से नर्सरी बेड की शीर्ष मिट्टी में मिलाया जाता है।
स्वस्थ पौध प्राप्त करने के लिए, बीज को बुवाई से पूर्व 2gm / kg बीज की दर से कप्टान अथवा बाविस्टीन से उपचारित किया जाना चाहिए। बीज को नर्सरी बेड में या तो छींटा देकर या पंक्तियों में बोया जाता है, पंक्तियों के बीच 7.5 सेमी की दूरी रखी जाती है। बुवाई के बाद, बेड को सूखी घास या खाद की एक पतली परत से कवर किया जाता है, इसके बाद बेड को हज़ारे से पानी दिया जाता है। रोपाई से लगभग 10 दिन पहले शिमला मिर्च और मिर्च की क्लिपिंग (Clipping) करने से, पौध की रोपाई करने पर इसके बेहतर स्थापन में मदद मिलती है और साथ ही सहायक कलियों (auxiliary buds) के विकास में तेजी आती है जिसके परिणामस्वरूप अधिक शाखाएँ निकलती है। बुआई के 4 से 6 सप्ताह बाद रोपाई के लिए पौध तैयार हो जाती है।
बीज दर (Seed Rate):
एक हेक्टेयर भूमि पर रोपाई के लिए लगभग 1.0-1.250 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
खेत की तैयारी (Preparation of field)
एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 बार कल्टीवेटर से जुटाई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लिया जाता है और अंतिम जुताई के समय 25 टन गोबर की खाद को मिट्टी मे भली भांति मिला दिया जाता है।
दूरी और रोपण (Spacing and transplanting)
रोपण दूरी कम रखने पर मिर्च से अधिक पैदावार मिलती है और 20X20cm, 30X30cm, 45X45cm और 75X45cm के फ़ासले से अधिक पैदावार मिलती है।
शिमला मिर्च का पौधा अधिकतम फल की पैदावार 45 X 45cm के अंतर पर देता है। 60X30 के अंतराल पर 55,000 पौधे / हेक्टेयर के साथ शिमला मिर्च की किस्म कैलिफोर्निया वन्डर में 12.3t / ha की उच्चतम पैदावार मिल जाती है।
खाद एवं उर्वरक (Fertilizer and manures)
मिर्च और शिमला मिर्च की बरसात आधारित खेती और सिंचित खेती खाद और उर्वरक देने पर अच्छा उत्पादन देती है मिर्च और शिमला मिर्च के लिए आवश्यक पोषक तत्व निम्न लिखित है-
Chilli | Capsicum | ||
Nutrients | Irrigated (kg/ha) | Rainfed (kg/ha) | Irrigated (kg/ha) |
N | 175 | 100 | 150 |
P | 75 | 50 | 75 |
K | 75 | 50 | 50 |
आम तौर पर मिर्च और शिमला मिर्च में 250-500 क्विंटल / हेक्टेयर गोबर की खाद, 350 किलोग्राम / हेक्टेयर अमोनियम नाइट्रेट, 175 किलोग्राम / हेक्टेयर SSP और 100 किलोग्राम / हेक्टेयर पोटेशियम सल्फेट अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए दिए जाते हैं।
P और K की पूर्ण खुराक और N की आधी खुराक को रोपाई के समय दी जानी चाहिए और नाइट्रोजन की शेष खुराक रोपाई के 35-40 दिन बाद दें।
सिंचाई (Irrigation)
मिर्च का भारत में अधिकतर हिस्सा बरसात आधारित (rainfed) फसल के अंतर्गत आता है इस लिए इन क्षेत्रों में तो आवश्यकता के अनुसार ही सिंचाई की जाती है
बरसात के समय और मिट्टी के प्रकार के अनुसार सामान्यतः 8 से 9 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जाती है
खरपतवार नियंत्रण (Weed control)
एक ही क्षेत्र में काली मिट्टी की तुलना में लाल मिट्टी में खरपतवार अधिक होती है। खरपतवार को नष्ट करने के लिए 2-3 हल्की निराई गुड़ाई प्रारम्भिक अवस्था में करनी चाहिए। खरपतवार नाशी जैसे Lasso @ 1.5 लीटर / हेक्टेयर भी प्रभावी हैं। इस के अतिरिक्त डेफेनमाइड (dephenamide), ट्राइफ्यूरलिन (trifluralin), EPTC, नाइट्रोफेन (Nitrofen) के भी मिर्च की फसल में अच्छे परिणाम आते है। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न प्रकार की घास, फसल के अवशेष, प्लास्टिक की फिल्में आदि का उपयोग किया जाता है।
रसायनों और वृद्धि हार्मोन्स का उपयोग (Use of chemicals and growth regulators)
विभिन्न विकास नियामकों के छिड़काव से मिर्च के पौधे की वृद्धि में सुधार होता है जो निम्न प्रकार से है।
Name of the Chemical | Concentration | Effects |
NAA (Planofix) | 10ppm | शाखाओं में वृद्धि |
NAA | 10-100 ppm | फलन में वृद्धि |
Triacontanol | 1 ppm | बेहतर पौधे की वृद्धि |
Ethrel | 300-500ppm | शाखाओं में वृद्धि |
CCC | 500-2000 ppm | शाखाओं में वृद्धि |
CCC | 20-200 ppm | फलन में वृद्धि |
GA | 50-200 ppm | शाखाओं में वृद्धि |
संरक्षित खेती (Protected cultivation)
शिमला मिर्च को या तो फलों के लिए या बीज उत्पादन के लिए प्राकृतिक रूप से हवादार ग्रीन हाउस अथवा नेट हाउस में बेमौसमी खेती के रूप में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, जहां तापमान 300C से अधिक नहीं रहता है। तापमान को कम करने के लिए fogger चला कर अधिक आद्रता पैदा कर तापमान को कम किया जाता है जिससे 32-35 t / ha फल की उपज और 1–1.5 किलो / 100 m2 की बीज उपज प्राप्त होती
तुड़ाई और उपज (Harvesting and yield)
फसल को या तो हरे फल या लाल पके फलों के लिए हाथ से चुना जाता है। हरे फलों की पिकिंग (Picking) 10-12 दिनों के अंतराल पर लगभग 2 महीने तक की जाती है और वे हरी मिर्च के लिए 5-6 और लाल पके फलों के लिए 3-4 तुड़ाई की जाती है
पैदावार लगभग 7 से 16 टन प्रति हेक्टेयर हरी मिर्च और शिमला मिर्च की 12-20 टन / हेक्टेयर हो सकती है। सूखी मिर्च की सिंचित फसल में पैदावार 0.5-1.0t / हेक्टेयर और सिंचित फसल की 1.5-2.5t / हेक्टेयर हो सकती है ।
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रोग (Diseases):-
- Antharacnose:-
गहरे धँसे हुए धब्बे फलों पर बनते हैं और गुलाबी या गहरे रंग, धब्बों के केंद्र में दिखाई देता हैं। और फल सड़ शुरू हो जाते हैं और गिर जाते हैं।
Control:
- बीजों को बुआई से पूर्व Cerasan 2 gm / kg बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
- प्रभावित फसल पर मेनकोजेब (Diathane M-45) का 5g का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें।
- Leaf Curl Virus:-
प्रभावित पौधे की पटिया लहरदार (curl) होकर विकृत हो जाती है पौधे की वृद्धि रुक जाती है फलन भी प्रभावित होता है यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है।
Control:
- Carbofuran अथवा Disultation को 5 kg / ha की दर से खेत की मिट्टी 10 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए जिस से रोग वाहक को नष्ट किया जा सके।
कीट (Insect Pest):
- Aphid:
एफीड वायरस वाले रोगों का वाहक होता है तथा पौधों के कोमल भागों से रस चूस कर पौधे को नुकसान पहुंचता है।
Control:
- Parathion अथवा Melathion का छिड़काव करना चाहिए।
- Pepper Weevil (Anthonomus eugenii):
वयस्क और लार्वा दोनों पौधे के कोमल भागों को खा कर नुकसान पहुंचते है।
Control:
- कीट के नियंत्रण के लिए Melathion का छिड़काव करना चाहिए।
- Thrips:-
थ्रीप्स हरे से पीले रंग का छोटा सा कीट होता है जो पौधे की पत्तियों से रस चूस कर नुकसान पहुंचता है
Control:
प्रभावित फल पर मेलथिऑन अथवा इमिडाकलोरपरिड का 0.05% का छिड़काव करे।
भौतिक विकार (Physiological disorders)
Blossom end rot:
यह शिमला मिर्च का एक विकार है जिसमें जल आसक्त धब्बे सबसे पहले फल के खिलने वाले छोर पर दिखाई देते हैं। धब्बे हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं धब्बे जल्द ही सूख जाते हैं । निम्न कारणों से यह विकार हो सकता है
- i) विशेष रूप से नमी की कमी की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की दर में अचानक परिवर्तन
- ii) लगातार उच्च वाष्पों-उत्सर्जन (evapotranspiration) और एक बड़ा पत्ती क्षेत्र
iii) फलों में नाइट्रोजन का स्तर अधिक होने से।
Control
- सिंचाई की आवृत्ति (frequency) बढ़ाकर इस विकार को कम किया जा सकता है।
- उर्वरक अनुशंसित मात्रा में ही देने चाहिए और फॉस्फेट उर्वरक को थोड़ी ज्यादा मात्र में देने से इस विकार में कमी आती है
- खेत में चुना (liming) देने से भी विकार कम होता है
- फलों के विकास के समय कैल्सीअम क्लोराइड का 0.5% का पर्णीय छिड़काव (foliar spray) भी लाभदायक रहता है।
Sun scald:
यह भी शिमला मिर्च का ही विकार है जब फल का कोई हिस्सा सूर्य की सीधे प्रकाश में आ जाता है तो फल का वह हिस्सा कोमल और हल्के रंग का हो जाता है उस जगह पर झुर्रियां पड़ जाती है और फल की कीमत कम हो जाती है यह विकार उन पौधों में देखने को मिलता है जिन पर पत्तियां कम होती है
Skin cracking:
शिमला मिर्च का एक विकार जहां फलों के कंधे के चारों ओर दरार पड़ जाती है। यह अक्सर तापमान और आर्द्रता में उतार-चढ़ाव के करण होता है। दिन का उच्च तापमान और औसत आर्द्रता फटने की घटना को बढ़ाता है
Flower and fruit drop:
यह विकार मिर्च की फसल का मुख्य समस्या है । पुष्पों और फलों के गिरने के करण है –
- कम आर्द्रता और उच्च तापमान की स्थिति जिसके परिणामस्वरूप पौधे में अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन और पानी की कमी होती है और कलियों, फूलों और छोटे फलों का abscission होने लगता है।
- प्रकाश की तीव्रता कम होना
- लघु दिन (Short day) और उच्च तापमान और
- प्रारंभिक पुष्पन के दौरान उच्च तापमान।
Control
- फूल और फल बनने की अवस्था पर सिंचाई करने से फल गिरने को कम करने में मदद मिलती है।
- पुष्पन के समय 50 ppm NAA का पर्णीय छिड़काव फल गिरने की समस्या को कम करता है। अथवा 20 ppm NAA का छिड़काव पुष्पन के समय और 30 दिनों के अंतराल पर 2 बार फिर से करने से लाभ मिलता है
- ट्रियकोंटानोल (Vipul) का 1ml प्रति 2 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करने से भी इस वीकर को कम किया जा सकता है।