वानस्पतिक नाम – सिट्रस रेटिकुलाटा
कुल – रुटेसी
उत्पत्ति– चीन
गुणसूत्र संख्या– 2n=18
फल का प्रकार– हेस्परिडियम
पुष्पक्रम का प्रकार – साइमोस (सोलिटेरी)
खाने योग्य भाग – रसीले पलसेन्टल बाल (Juicy Placental Hairs)
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- नीबू वर्गीय प्रजातियों के तहत मंदारिन 50% क्षेत्र में उगाया जाता है
- सिट्रस के बीजों में प्रसुप्ति नहीं होती है इसलिए निष्कर्षण के तुरंत बाद उन्हें बो देना चाहिए
- साल में तीन बार फूल आते है
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- फरवरी फूल ——अम्बे बहार
- जून फूल ————मृग बहार
- अक्टूबर फूल ——हस्त बहार
- मंदारिन/नारंगी जल भराव से अतिसंवेदनशील होती हैं
- HDP के लिए मूलवृंत – ट्रॉयर सिट्रेंज (1.8x8m2)
- छंटाई (pruning) का सबसे अच्छा समय – सर्दी का अंत या शुरुआती बसंत
- अत्यधिक बहुभ्रूणता – मंदारिन, मौसम्बी, नींबू, ग्रैपफ्रूट।
- एकल भ्रूणता (मोनोएम्ब्रायोनिक) – प्यूमेलो, टहिटी लाइम, सिट्रॉन।
- मैंडरिन और मौसम्बी के लिए रंगपुर लाइम सबसे बढ़िया मूलवृंत है।
- मूलवृंत – एडजामिर (सी. एसामेन्सिस) हरेपन (greening) का प्रतिरोधी हैं।
- नीबू वर्गीय फलों में एक विशेष प्रकार का छिलका होता है जिसे लेदरी रिंड कहा जाता है
- सिट्रस सूक्ष्म पोषक तत्वों को पसंद करने वाला पौधा है
- फाइटोपथोरा और नेमाटोड के लिए ट्राइफोलिएट ऑरेंज प्रतिरोधी होता है।
- एलेमो (सिट्रस मैक्रोफिला) ओल्ड-लाइन टेंपल मैंडरिन (सिट्रस टेंपल) के लिए बौना मूलवृन्त है।
- लिमोलिन – सिट्रस जूस में कड़वे स्वाद के लिए ग्लाइकोसाइड जिम्मेदार होता है।
- संतरे की सुगंध – वैलेंसिन के कारण होती है।
- 1935 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एच. बी. फ्रॉस्ट द्वारा विकसित मैंडरिन की किन्नू किस्म है।
- किन्नू को भारत में 1959 में पुरः स्थापित किया गया था
- नागपुर मंदारिन को 1894 में शुजी राजा भोंसले द्वारा भारत में पुरः स्थापित किया गया था
- मंदारिन की सिंचाई आवश्यकता अन्य नीबू वर्गीय प्रजातियों की तुलना में अधिक है
- भारत में नीबू वर्गीय फलों का सबसे अधिक उत्पादन वाला राज्य आंध्र प्रदेश है और उसके बाद महाराष्ट्र है।
- सिक्किम इकलौती ऐसी जगह है जहां लकड़ी के बक्सों में मंदारिन पैक किया जाता है
किस्में :-
- कूर्ग- दक्षिण भारत की सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक किस्म है
- खासी – स्थानीय रूप से सिक्किम या कमला मंदारिन के रूप में जाना जाता है
- नागपुर (पोंकन) – दुनिया में सबसे बेहतरीन मंदारिन, महाराष्ट्र की सतपुड़ा पहाड़ियों में उगाया जाता है।
- सत्सुमा (बीज रहित) – जापान का वाणिज्यिक मंदारिन
- एम्पेरोरस और फुइटरेलेस – ऑस्ट्रेलिया से पुरः स्थापित।
- सुतवाल – नेपाल से पुरः स्थापित।
- लड्डू
संकर:-
किन्नू- किंग (सिट्रस नोबिलिस ) X विलो लीफ (सिट्रस डेलिसिओसा)
पहली बार जट्टी खट्टी (सिट्रस जांभीरी) मूलवृंत पर उगाई गई (1959 में पीएयू क्षेत्रीय अनुसंधान स्टेशन अबोहर में)
जलवायु
- मंदारिन को उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है
- समुन्द्र तल से 600 से 1100 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जाता है।
- वार्षिक वर्षा 75 – 250 सेमी
मिट्टी
- मध्यम से हल्का दोमट, गहरी, अच्छे जल निकास वाली, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर अतिरिक्त नमक से मुक्त होनी चाहिए।
- मिट्टी का पीएच – 5 से 8.0
प्रवर्धन
- मंदारिन बड़े पैमाने पर बीजों द्वारा प्रवर्धित किया जाता है। हालाँकि, नागपुर संतरा और किन्नू का प्रवर्धन मुख्य रूप से कलिकायन द्वारा किया जाता है।
मूलवृन्त
- महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में नागपुर संतरा के लिए जम्भीरी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है
- कर्णा खट्टा मूलवृन्त का उपयोग पंजाब और यूपी में किया जाता है
खाद और उर्वरक
- N:P:K – 290 : 200 : 240 ग्राम/पेड़
- FYM – 100 किग्रा/पेड़
- P2O5 और K2O की कुल मात्रा और N की आधी मात्रा फरवरी मार्च के दौरान और N की शेष मात्रा सितंबर-अक्टूबर के दौरान दी जाती है।
सिंचाई
- गर्मी के मौसम में 8-10 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 20-25 दिनों के अंतराल पर
इंटरकल्चर और इंटरक्रॉपिंग
- वर्ष में दो और तीन बार गुड़ाई की जाती है
- मूंग, उड़द, मटर, गोभी, आलू आदि उपयुक्त अन्तःफसलें हैं।
फूलना और फलना
- पौधे रोपण के 4-5 वर्ष बाद फूल और फल देने लगते हैं
- किन्नू के पेड़ अनियमित फलन की प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं। यानी भारी फसल वर्ष के बाद खराब फलन वर्ष होता है जिसमें खराब गुणवत्ता के छोटे व् कम फल लगते हैं
- पूरी तरह खिलने के 30 दिनों के बाद एनएए 350 पीपीएम का प्रयोग उचित मात्रा में फलों के विरलीकरण को प्रेरित करता है।
तुड़ाई
- नॉन क्लीमैटेरिक होने के कारण, मैंडरिन फल कटाई के बाद पकने में विफल रहते हैं केवल तभी कटाई की जाती है जब वे पूरी तरह से पके हों, आकर्षक नारंगी रंग के हों और स्वीकार्य शर्करा अम्ल अनुपात हों
- किन्नू की तुड़ाई – जनवरी के अंत से फरवरी के मध्य तक की जाती है।
उपज
- मंदारिन लगभग 9-10 वर्षों के बाद 500-800 फल देता है।
- किन्नू के पेड़ रोपण के चौथे वर्ष के बाद फल देने लगते हैं और औसत उपज 3 किलोग्राम/पेड़ (28.12 टन/हेक्टेयर) होती है। व्यावसायिक उपज 7वें वर्ष से शुरू होती है और 85 किग्रा/वृक्ष तक उपज प्राप्त होती है।