दाबा लगाना (लेयरिंग)
दाबा लगाना (लेयरिंग) जड़ वाली कलमों का एक रूप है जिसमें एक तने पर आकस्मिक जड़ें उत्त्पन करवाई जाती हैं, जबकि यह अभी भी पौधे से जुड़ा हुआ होता है। जड़ वाले तने (लेयरिंग) को फिर अलग कर प्रतिरोपण किया जाता है, जबकि बाद में यह अपनी जड़ों पर एक अलग पौधा बन जाता है। यह ब्लैकबेरी में प्रसार का एक प्राकृतिक साधन है या इसे सेब के क्लोनल मूलवृन्त जैसे कई पौधों में कृत्रिम रूप से प्रेरित किया जा सकता है। सामान्य तौर पर, लेयरिंग में बेहतर जड़ें रिंगिंग या घाव, इटिओलेशन (etiolation), या IBA, NAA जैसे रूटिंग हार्मोन के उपयोग और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों (तापमान और आर्द्रता) प्रदान करके प्राप्त की जा सकती है।
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लाभ
- यह उन प्रजातियों के प्रवर्धन का एक प्रभावी तरीका है जो आम तौर पर काटकर अलग करने से आसानी से जड़ें नहीं पैदा करते हैं आम, लीची, फिलबर्ट, और कुमकुआट आदि ।
- यह ब्लैकबेरी और रस्पबेरी में प्रजनन की एक प्राकृतिक विधि है।
- प्रसार के अन्य तरीकों की तरह इसे पानी, सापेक्षिक आर्द्रता या तापमान पर सटीक नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।
- आसान होता है और इसके लिए बहुत अधिक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता नहीं होती है।
हानियाँ
- उन क्षेत्रों में महँगा है जहाँ श्रम की उपलब्धता एक समस्या है।
- सीमित संख्या में पौधों का उत्पादन किया जा सकता है।
- लेयरिंग द्वारा उत्पादित पौधों में आमतौर पर छोटी भंगुर जड़ें होती हैं।
- मृत्यु दर विशेष रूप से एयर लेयरिंग द्वारा उत्पादित पौधों में अधिक होती है।
दाबा कलम के प्रकार
पौधों को दाबा कलम से तैयार करने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली प्रणालियों में शामिल हैं:
A. Ground Layering
- Simple Layering
- Compound/ serpentine Layering
- Continuous/Trench Layering
- Tip Layering
- Mound/ Stool Layering
B. Air layering
इनमें से सबसे अधिक व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों के गुणन के लिए माउंट और कुछ उष्णकटिबंधीय फलों के लिए एयर लेयरिंग हैं।
A. Ground Layering
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Simple Layering
सिंपल लेयरिंग में जमीन पर एक अक्षुण्ण प्ररोह को झुकाना होता है, जिससे आकस्मिक जड़ें बनती हैं। इस पद्धति का उपयोग पौधों की एक विस्तृत श्रृंखला में प्रवर्धन के लिए किया जा सकता है, इनडोर या आउटडोर झाड़ियों में जो ज्यादा सकर्स पैदा करती हैं। लेयरिंग आमतौर पर वसंत के शुरुआत में पौधे की लचीली, सुषुप्त, एक वर्षीय शाखाओं का उपयोग करके की जाती है जिन्हें आसानी से जमीन पर झुकाया जा सकता है। ये शाखाएं मुड़ी हुई होती हैं और टिप से 15 से 20 सेमी की दूरी पर “नीचे की ओर” “U” आकार के में होती हैं। “U” आकार में मुड़ी शाखा के तल पर मोड़ना, घुमाना, काटना या गिर्डलिंग (girdling) उस स्थान पर जड़ों को उत्तेजित करता है। लेयरिंग का आधार मिट्टी या अन्य जड़ साधन से ढक दिया जाता है, जिसमें शीर्ष (tip) निरावरण रखा जाता है।
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- Compound or Serpentine Layering
यह सरल लेयरिंग का एक संशोधन है जिसमें एक वर्षीय शाखा को इसकी लंबाई के साथ बारी बारी से कवर और उजागर किया जाता है। तने को भूमिगत भाग से छल्ले नुमा छाल को हटाया जाता है। हालांकि, नई शाखा को विकसित करने के लिए तने के खुले हिस्से में कम से कम एक कली होनी चाहिए। जड़ें निकलने के बाद, शाखा को टुकड़ों में काट दिया जाता है और खेत में रोपित कर दिया जाता है। इस तरह एक शाखा से कई नए पौधे बनाए जा सकते हैं। यह एक आसान पौध प्रसार विधि भी है, लेकिन केवल पतले, लंबे और लचीली शाखा पैदा करने वाले पौधों के लिए उपयुक्त है। मस्कैडिन अंगूर को इस विधि द्वारा व्यावसायिक रूप से प्रवर्धित किया जाता है।
- Continuous or Trench Layering
यह काष्ठीय पौधें जो लम्बी शाखाओं का उत्पादन करते है के लिए प्रवर्धन का सबसे आम तरीका है, और ऐसे पौधे जिनको अन्य प्रवर्धन विधियों से प्रवर्धित नहीं किया जा सकता हैं। सेब के लम्बे मूलवृन्त जैसे M-16, और M-25 और अखरोट को ट्रेंच लेयरिंग द्वारा आसानी से प्रवर्धित किया जा सकता है। इस पद्धति से, प्रवर्धित करने के लिए पौधों को एक स्थाई पंक्ति में रोपित करना महत्वपूर्ण है।
इस विधि में पौधों को खाई के आधार पर 450 के कोण पर 90 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में लगाया जाता है। इन पौधों के लंबे और लचीले तनों को जमीन की ओर झुका कर खाई में दबा दिया जाता है। इन पौधों से उत्पन्न होने वाले युवा शाखाओं/अंकुरों को धीरे-धीरे पतझड़, सर्दी या बढ़वार के मौसम के अंत में 15-20 सेमी ऊँचा टीला लगाया जाता है, जो कि प्रवर्धित की जाने वाली प्रजातियों पर निर्भर करता है। फिर इन शाखाओं/ अंकुरों पर जड़े निकलने के पश्चात पैतृक पौधे से अलग कर नर्सरी में रोपित कर दिया जाता है
- Tip layering
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यह लेयरिंग का सबसे सरल रूप है, जो अक्सर स्वाभाविक रूप से होता है। टहनियों के सिरों को मिट्टी में 5 से 10 सेमी गहराई में दबा दिया जाता है। दबे हुए अंकुरों में जड़ें एक महीने के भीतर उग आती हैं। वसंत के दौरान नए पौधों (लेयर) को अलग किया जा सकता है और मिट्टी में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। यह ब्लैकबेरी, रसबैरी आदि के लिए प्रजनन की एक प्राकृतिक विधि है। हालांकि, आंवले, और लता गुलाब को भी टिप लेयरिंग द्वारा आसानी से प्रवर्धित किया जा सकता है।
- Mound /Stool Layering or Stooling
स्टूलिंग शब्द पहली बार लिंच द्वारा 1942 में माउंट लेयरिंग के लिए गढ़ा गया था। यह प्रवर्धन की एक विधि है जिसमें टहनियों/पौधों को वापस जमीन तक काट दिया जाता है और जड़ों को उनके आधारों पर विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए नए स्प्राउट्स/टहनियों के चारों ओर मिट्टी या जड़ वाले माध्यम का टीला लगाया जाता है। इस विधि का उपयोग व्यावसायिक रूप से सेब, नाशपाती, क्विंस, आंवले और अन्य फलों की फसलों के प्रवर्धन के लिए किया जाता है। स्टूलिंग में, सुप्त मौसम के दौरान पैतृक पौधे जमीनी स्तर से 15 से 20 सेमी ऊपर से काट दिए जाते है।
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- नए अंकुर/शाखा 2 महीने के भीतर पैदा हो जाएंगे। फिर अंकुर के आधार के पास से रिंग के आकर की छाल (girdled) को हटाया जाता है और लैनोलिन पेस्ट में बने रूटिंग हार्मोन (IBA) को रिंग के ऊपरी हिस्से पर लगाया जाता है। रूटिंग हार्मोन के उचित अवशोषण के लिए इन अंकुरों को दो दिनों के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, फिर इन्हें नम मिट्टी से ढक दिया जाता है।
- यह ध्यान रखना चाहिए की मिट्टी का ढेर हर समय नम रहे। अंकुरों/टहनियों में जड़ें 30 से 40 दिनों के भीतर पैदा हो जाती हैं ।
- हालांकि, जड़ वाली टहनियों को 60 से 70 दिनों के बाद ही पैतृक पौधे से अलग कर देना चाहिए और फिर नर्सरी या खेत में लगा देना चाहिए।
B. Air Layering (Marcottage, Gootee, Pot layerage)
एयर लेयरिंग लेयरिंग की एक प्राचीन विधि है, जिसे मूल रूप से चीन से शुरू किया गया था और अब इसका व्यावसायिक रूप से कई उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय पेड़ों और झाड़ियों के प्रवर्धन के लिए उपयोग किया जाता है, जिसमें लीची, अमरूद, आम, लोंगन, फारसी नीबू (साइट्रस औरेंटिफोलिया), फाइकस, क्रोटन आदि शामिल हैं। पिछले मौसम की वृद्धि के शाखाओं पर वसंत या गर्मियों में गुट्टी बनाई जाती हैं। गुट्टी वाली शाखा पर सक्रिय पत्तियों की उपस्थिति जड़ निर्माण को गति देती है।
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शाखा के केंद्र में या उसके आसपास से लगभग 2 सेमी चौड़ी छले नुमा छाल (girdled) को हटा दिया जाता है। घाव के ऊपरी हिस्से पर IBA पेस्ट को लगाया जाता है। घाव को एक तरह से नम स्फाग्नम मॉस से ढक दिया जाता है ताकि इसे पूरा कवर मिल सके। पॉलीथिन की आयताकार पट्टी/फिल्म स्फाग्नम मॉस के चारों ओर इस तरह लपेटी जाती है कि कोई भाग खुला न रहे, जिससे स्फाग्नम मॉस से नमी का वाष्पीकरण हो सके। जड़ निकलने के बाद शाखाओं को पैतृक पौधे से अलग कर लिया जाता है और छाया में नर्सरी में लगाया जाता है।
References cited
1.Chadha, K.L. Handbook of Horticulture (2002) ICAR, NewDelhi
2.Jitendra Singh Basic Horticulture (2011) Kalyani Publications, New Delhi
3.K.V.Peter Basics Horticulture (2009) New India Publishing Agency
4. Jitendra Singh Fundamentals of Horticulture, Kalyani Publications, New Delhi