शकरकंद की खेती

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शकरकंद की खेती

सब्जी / शाक विज्ञान

वानस्पतिक नाम: ईपोमिया बैटेटास एल.

कुल: कॉन्वोल्वुलेसी

गुणसूत्र संख्या: 2n=6x=90

उत्पत्ति: उष्णकटिबंधीय (दक्षिण) अमेरिका

खाद्य भाग: रूपांतरित जड़ें (कंदीय मूल)

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महत्वपूर्ण बिंदु

  • शकरकंद का सबसे संभावित पूर्वज है – ईपोमिया ट्रिफ़िडा
  • शकरकंद एक बहुवर्षीय फसल है।
  • व्यावसायिक रूप से बेल को कटिंग (4000 कलम/ हेक्टर) द्वारा प्रवर्धित किया जाता है।
  • शकरकंद की श्वसन दर कम होती है।
  • यह लवणों के प्रति कम सहनशील है लेकिन मिट्टी की अम्लता के प्रति सहनशील है।
  • यह एक गहरी जड़ वाली फसल है।
  • शकरकंद में नर बांझपन पाया जाता है।
  • शकरकंद एक लघु दिवस पौधा है।
  • अत्यधिक वर्षा और लंबे दिन की स्थिति बेल की वृद्धि को बढ़ावा देती है और कंद की उपज को कम करती है।
  • पुष्पन – सुबह 4:00-5:00 बजे
  • फसल उगाने के लिए मेड़ और नाली विधि (रिज और फ़रो विधि) सर्वोत्तम है
  • जड़ों का उपयोग मुख्य रूप से उबालकर या भाप से पकाने या तलने के बाद मानव भोजन के लिए और पशु आहार के रूप में किया जाता है।
  • इसका उपयोग औद्योगिक स्टार्च, सिरप और अल्कोहल बनाने के लिए किया जाता है।
  • भारत में, यह मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, तमिलनाडु और उड़ीसा में उगाया जाता है।
  • चीन सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत दक्षिण पूर्व एशिया में शकरकंद का सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया में चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है।

पोषण मूल्य (प्रति 100 ग्राम खाद्य भाग)

नमी 70.2 ग्राम, ऊर्जा 120 किलो कैलोरी, प्रोटीन 1.65 ग्राम, विटामिन ए 14,187 आईयू, वसा 0.4 ग्राम, विटामिन सी 2.4 मिलीग्राम, कार्बोहाइड्रेट 28.2 ग्राम, आयरन 0.8 मिलीग्राम, फाइबर 3 ग्राम, कैल्शियम 22 मिलीग्राम, स्टार्च 16%, शर्करा 4%।

जलवायु

शकरकंद को उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जा सकता हैं। इसे गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। इष्टतम तापमान 21-27 डिग्री सेल्सियस है, और 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे कंद निर्माण रुक जाता है। शकरकंद सबसे अधिक सूखा प्रतिरोधी सब्जी फसलों में से एक है।

मिट्टी

शकरकंद को अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है जिसमें ह्यूमस भरपूर मात्रा में हो। चिकनी मिट्टी वाली रेतीली दोमट मिट्टी कंद उत्पादन के लिए आदर्श होती है। भारी मिट्टी में कंद का आकार छोटा हो जाता है। आदर्श मिट्टी का पीएच 5.8 और 6.7 के बीच होना चाहिए।

ICAR-IARI, नई दिल्ली

पूसा सफ़ेद

सफ़ेद एक सफ़ेद छिलके वाली किस्म, मध्यम आकार का कंद, अच्छी गुणवत्ता वाला, उच्च उपज देने वाला।

 

पूसा सुनहरी

USA से चयनित क़िस्म, नारंगी रंग का गुद्दा और कैरोटीन से भरपूर

 

पूसा भारती

उच्च विटामिन-सी और बीटा कैरोटीन

 

पूसा लाल

अच्छा भंडारण जीवन

ICAR-CTCRI, तिरुवनंतपुरम

वर्षा

अर्द्ध-फैलने वाली संकर किस्म, उत्कृष्ट पाक गुणवत्ता; 120-125 दिनों में 18-22 टन/हेक्टेयर उपज।

 

श्री नंदिनी

हल्का क्रीम छिलका, सफेद गुद्दा और अच्छी पकाकर खाने की गुणवत्ता।

 

श्री रतना

नारंगी गुद्दा, उत्कृष्ट पकाकर खाने की गुणवत्ता

 

श्री भाद्रा

रूट-नॉट नेमाटोड के प्रति प्रतिरोधी। रूट-नॉट नेमाटोड के लिए उत्कृष्ट ट्रैप फसल।

 

श्री अरुण

केसरिया रंग के कंद उत्पन्न होते हैं, पकाकर खाने लिए अच्छे होते हैं; उपज 20 टन/हेक्टेयर होती है।

 

श्री वरुण

क्रीम छिलका, गुद्दा और अच्छी पकाकर खाने की गुणवत्ता।

 

गौरी

खरीफ और रबी मौसम के लिए उपयुक्त। कंद में उच्च कैरोटीन होता है।

 

शंकर

उत्कृष्ट पकाकर खाने की गुणवत्ता

TNAU, कोयंबटूर

को-1

140 दिनों में 26 टन/हेक्टेयर तक उपज

 

को-2

110-115 दिनों में उपज 32 टन/हेक्टेयर होती है

RAU, ढोली

कालमेघ

बहुत जल्दी पकने वाली किस्म। गोल और भूरे रंग के कंद।

 

राजेंद्र शकरकंद-5

फ्यूजेरियम विल्ट और सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग के प्रति प्रतिरोधी।

BSKKV, दापोली

कोंकण अश्विनी

गहरे बैंगनी और क्रीमी रंग के गूदे के कारण इसे उपभोक्ताओं द्वारा काफी पसंद किया जाता है।

अन्य किस्में – पंजाब स्वीट पोटैटो-21, श्री कनक, एच-41, एच-42, को-3, को सीआईपी 1, कंजंघाड, किरण, सम्राट, भुबन, गोल्ड रश आदि।

बुआई का समय

  • वर्षा आधारित क्षेत्र: जून-जुलाई
  • सिंचित क्षेत्र: अक्टूबर-नवंबर

बीज दर

प्रति एकड़ 25,000-30,000 बेल कटिंग या प्रति हेक्टेयर 50,000-60,000 बेल कटिंग का उपयोग करें। फरवरी से मार्च तक बेल उगाने के लिए आधा कनाल जमीन में 35-40 किलोग्राम कंद बोया जाता है।

बीज उपचार

कंदों को प्लास्टिक की थैली में रखें और फिर उन्हें 10-40 मिनट के लिए सांद्रित सल्फ्यूरिक एसिड में भिगो दें।

नर्सरी तैयार करना

शकरकंद को मुख्य रूप से 25-30 सेमी लंबाई की बेल कटिंग द्वारा प्रवर्धित किया जाता है। रोपण के लिए कटिंग को दो नर्सरियों में गुणित किया जाता है- प्राथमिक और द्वितीयक। प्राथमिक नर्सरियों में कंद रोपण से तीन महीने पहले लगाए जाते हैं। एक हेक्टेयर रोपण के लिए बेलों को उगाने के लिए 10m2 के नर्सरी क्षेत्र की आवश्यकता होती है। 60 सेमी की दूरी पर मेड़ तैयार की जाती हैं और 125-150 ग्राम वजन के कंद लगाए जाते हैं और आवश्यकतानुसार सिंचाई करते हैं। द्वितीयक नर्सरी में रोपण के लिए कंदों की बुवाई के 40-45 दिनों के बाद 20-30 सेमी की लंबाई में बेलों को काट लें। कटिंग लगाने के लिए द्वितीयक नर्सरी के लिए 500 m2 जगह की आवश्यकता होती है। 60 सेमी दूर मेड़ों में 25 सेमी की दूरी पर ली गई कटिंग लगाएँ। नर्सरी में रोपण के 15-30 दिनों के बाद 5.0 किलोग्राम यूरिया डाला जा सकता है। 45 दिनों के बाद बेलों के मध्य और शीर्ष भाग से 20-30 सेमी लंबाई में कटिंग काट लें। कटी हुई बेलों को पत्तियों सहित मुख्य खेत में रोपने से पहले दो दिनों तक छाया में संग्रहित किया जाता है।

खेत की तैयारी

मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 15 सेमी गहराई तक 2-3 जुताई पर्याप्त है। अच्छी तरह से जुताई करने के बाद 60 सेमी की दूरी पर 25-30 सेमी ऊंची मेड़ बनाकर मुख्य खेत तैयार किया जाता है।

दूरी

60 ​​सेमी x 30 सेमी

खाद और उर्वरक

मेड़ तैयार करते समय 5 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालें। 50:25:50 किलोग्राम NPK प्रति हेक्टेयर उर्वरक की मात्रा की सिफारिश की जाती है। पूर्ण फास्फोरस और पोटेशियम, नाइट्रोजन की आधी मात्रा को मूल खुराक के रूप में दिया जाना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा एक महीने बाद दी जाती है।

सिंचाई

आमतौर पर, बरसात के मौसम की फसल को लंबे समय तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। रबी के दौरान बेहतर जड़ विकास और उपज सुनिश्चित करने के लिए 8-10 दिनों के अंतराल पर 12-14 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

अंतर-शष्य क्रियाएँ

खरपतवारों को नियंत्रित करने और मिट्टी की भौतिक स्थिति में सुधार करने के लिए विकास के शुरुआती चरण में निराई, गुड़ाई और मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। रोपण से पहले मिट्टी में 1.0 किग्रा/हेक्टेयर फ्लूक्लोरालिन मिलाने से खरपतवारों पर नियंत्रण होता है।

खुदाई

रोपण के 120-180 दिनों के बाद फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। खुदाई तब की जाती है जब पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और झड़ने लगती हैं। परिपक्वता का अंदाजा जड़ों को काटकर भी लगाया जा सकता है, कंद लेटेक्स बिना काला हुए सुख जाता है जो परिपक्वता का अच्छा संकेत देता है।

उपज

  • वर्षा आधारित स्थिति: 8-10 टन/हेक्टेयर
  • सिंचित स्थिति: 30-40 टन/हेक्टेयर

 कीट नियंत्रण

शकरकंद घुन (सिलास फॉर्मिकेरियस): यह सबसे महत्वपूर्ण कीट है जो फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। वयस्क घुन बेलों और कंदों पर छेद कर देता है। ग्रब सुरंग बनाकर छेद करते हैं और खाते हैं। कंद कड़वे होने के कारण खाने के लिए अनुपयुक्त होते हैं। गंभीर मामलों में उपज का नुकसान 100% तक होता है।

नियंत्रण: 10-15 दिनों के अंतराल पर मैलाथियान 50 ईसी @ 1.5-2.0 मिली/लीटर का छिड़काव करें। 

रोग नियंत्रण

  1. सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट: सबसे पहले अफ्रीका में रिपोर्ट किया गया। पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में आपस में मिल जाते हैं और बड़े घाव बन जाते हैं। गर्म, गीला और आर्द्र मौसम इस बीमारी के फैलने के लिए अनुकूल है।

नियंत्रण: इंडोफिल एम-45 या ज़िनेब @ 2 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव करें।

  1. तना सड़न या मुरझाना (फ्यूसैरियम ऑक्सीस्पोरम एफ. बैटाटास): प्रभावित पौधे की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, उन पर गोल धँसे हुए धब्बे पड़ जाते हैं और पौधे मुरझा जाते हैं।

नियंत्रण: रोपण से पहले एगैलोल या एरेटन के 0.2% घोल में डुबोएँ।

  1. तना सड़न या मुरझाना (फ्यूसैरियम ऑक्सीस्पोरम एफ. बैटाटास): यह रोग खेत और भंडारण दोनों में होता है। प्रभावित बेलों में तने के भूमिगत भाग पर पीले, बीमार और काले धब्बे दिखाई देते हैं।

नियंत्रण: रोपण से पहले एजेलोल या एरेटन के 0.2% घोल में डुबोएं।